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बडज़ात्या की दरियादिली भी कमाल की

फ्लैशबैक/प्रदीप सरदाना अब तक आपने पढ़ा- सामान्य मुलाकात से शुरू हुए मेरे और ताराचंद बडज़ात्या जी के संबंध इतने मधुर हो गए कि अपनी फिल्मों की शूटिंग पर बुलाने के साथ फिल्म की रिलीज से पहले उन्होंने मुझे फिल्म के अंश भी दिखाए। साथ ही ‘मैंने प्यार किया’ के गीतों को भी सबसे पहले मुझे […]
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फ्लैशबैक/प्रदीप सरदाना

अब तक आपने पढ़ा-
सामान्य मुलाकात से शुरू हुए मेरे और ताराचंद बडज़ात्या जी के संबंध इतने मधुर हो गए कि अपनी फिल्मों की शूटिंग पर बुलाने के साथ फिल्म की रिलीज से पहले उन्होंने मुझे फिल्म के अंश भी दिखाए। साथ ही ‘मैंने प्यार किया’ के गीतों को भी सबसे पहले मुझे सुनाकर मुझसे सलाह आदि लेना भी शुरू कर दिया। ‘मैंने प्यार किया’ का 16 प्रिंट से शुरू हुआ सफर बिना खास प्रचार के 350 प्रिंट्स तक पहुंचा। लेकिन जब मैंने सेठ जी से फिल्म की कुल कमाई पूछी तो वह बोले कमाई बताने से नजर लग जाती है।

अब आगे पढि़ए-
सेठ ताराचंद बडज़ात्या जी से अपनी बहुत सी मुलाकातों में मैंने उनके कई रूप देखे जिनमें कभी उनकी सादगी देखी तो कहीं प्रतिभा और दूरदृष्टि। बिजनेस की गहरी समझ तो उनकी बातों में साफ झलकती थी। लेकिन कुछ मौके ऐसे भी आये जिसमें सेठ जी की कुछ बातों ने मुझे बेहद चौंकाया। उनमें से एक-दो बातें तो आज भी मेरी आंखों के सामने ऐसे घूमती हैं जैसे यह चंद दिन पहले की ही बात हो,जबकि ये बातें करीब 24 बरस पहले की हैं और यहां मैं उनकी जिन दो बातों का खास जिक्र करने जा रहा हूं उन दोनों बातों में परस्पर विरोधाभास भी है।

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मुंबई से आया संदेश
बात सितंबर 1990 की है। ‘मैंने प्यार किया’ की अपार सफलता के बाद सेठ जी दिल्ली आने लगे तो उन्होंने मुझे मुंबई से सूचना भिजवाई कि वह तीन दिन के लिए दिल्ली आ रहे हैं,आप मुलाकात का समय जरूर निकालें। सेठ जी किसी  सीरियल के प्रोजेक्ट पर भी मुझसे सलाह-मशविरा करना चाहते थे और कुछ और बातें भी। मैंने उन तीन दिनों की कार्य योजना उसी हिसाब से तय कर ली।

चाय पीते-पीते टाइपराइटर की बात
वह दिल्ली आये तो मेरी पहली मुलाकात उनसे चांदनी चौक स्थित राजश्री के ऑफिस में हुई। हमेशा की तरह हल्दीराम की कचौड़ी, रसमलाई और गर्म चाय का ऑर्डर उन्होंने मेरे पहुंचते ही और मुझसे बिना कुछ पूछे दे दिया। हालचाल पूछने के बाद हमारी बातों का सिलसिला आगे बढ़ा। उनके दिल्ली ऑफिस के महाप्रबंधक महावीर बडज़ात्या हमारे साथ बैठे ही थे। उसी दौरान सेठ जी ने एक लैटर टाइप के लिए दिया तो मैंने देखा उनके ऑफिस में रेमिंगटन टाइप का पुराना टाइप राइटर ठक-ठक करके चल रहा है। यूं उन दिनों कंप्यूटर भी आ चुके थे। लेकिन प्रचलन में इलेक्ट्र्रॉनिक टाइप राइटर थे। मुझे आश्चर्य हुआ कि राजश्री जैसी बड़ी संस्था के राजधानी दिल्ली के ऑफिस में अभी तक पुराना जमाना चल रहा है।
मैंने इस बात को हंसते हुए सेठ जी को कहा कि आपके यहां  इलेक्ट्र्रॉनिक टाइपराइटर तो आ ही जाना चाहिए। इन पुराने टाइप राइटर पर टाइप किये लैटर अब जंचते नहीं हैं। सेठ जी ने मेरी बात सुन महावीर जी की ओर सवालिया नजरों से देखा तो वह थोड़े धीमे स्वर में बोले- इसके लिए मैंने लैटर भेजा था मुंबई लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया।  यह सुन सेठ जी बोले, प्रदीप जी की बात सही है इलेक्ट्र्रॉनिक टाइप से अच्छा प्रभाव आता है, पत्र-शब्द चमकते हुए लगते हैं। आप इसकी स्वीकृति मुझसे ले लीजिये और कोई अच्छा सा टाइप राइटर ले लीजिये। और प्रदीप जी को इसके लिए धन्यवाद भी दीजिये।

उम्मीद से कहीं ज्यादा
मैंने कहा,नहीं.. मुझे धन्यवाद क्या, आपके महावीर जी इस दफ्तर को बहुत अच्छे से संभाले हुए हैं, राजश्री का गौरव यहां दिखाई देता है इसीलिए मुझे लगा तो मैंने आपको इलेक्ट्र्रॉनिक टाइप राइटर का सुझाव दे दिया। यह सुन सेठ जी बोले -‘महावीर आप यह प्रपोजल अभी मुझसे सेंक्शन करा लें’। कुछ देर बाद प्रपोजल की फाइल सेठ जी को दी गयी तो उन्होंने इलेक्ट्र्रॉनिक टाइपराइटर की मंजूरी के साथ महावीर बडज़ात्या को भी एक हजार रुपये महीने की वेतन वृद्धि कर दी।  मैंने वह देखा तो हैरान रह गया कि सेठ जी ने मेरी सामान्य बात को इतना मान दे दिया। जब महावीर बडज़ात्या ने अपनी वेतन वृद्धि देखी तो वह तो भौंचक्के रह गए और मुझे और सेठ जी को उन्होंने तभी धन्यवाद कहा।।
यहां यह भी दिलचस्प है कि अगले महीने जब महावीर जी ने सेठ जी के उस आदेश के तहत अपनी एक हजार की वह वेतन वृद्धि ले ली तो मुंबई ऑफिस वाले हैरान रह गए। उन्होंने तुरंत महावीर जी से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि यह सेठ जी के आदेश हैं। उन दिनों सेठ जी किसी की वेतन वृद्धि या ऑफिस के ऐसे छोटे-मोटे कामों में कोई दखल नहीं देते थे।  इसलिए मुंबई ऑफिस के आला जनों को यह यकीन ही नहीं हुआ कि सेठ जी ऐसा कर सकते हैं।  इधर महावीर जी ने जब उस आदेश की प्रति मुंबई फैक्स की तो उन्हें विश्वास के साथ आश्चर्य भी हुआ कि पाई-पाई सोच-समझ कर खर्च करने वाले सेठ जी ने यह दरियादिली क्यों दिखाई लेकिन सेठ जी का आदेश तो कोई टाल ही नहीं सकता था।

अगले अंक में पढि़ए-
सेठ जी के इस दरियादिली वाले रूप के साथ उनकी इस बात का विरोधाभास वाला दूसरा रूप। साथ ही एक वह रहस्य वाली बात जिसे मेरे मुख से सुन सेठ जी कुछ देर के लिए मूर्ति की तरह स्थिर हो गए।

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